नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर – इतिहास, दर्शन समय व यात्रा गाइड
आपने राजस्थान के राजाओं की वीरता और निडरता की अनेक गाथाएँ सुनी होंगी—कैसे उन्होंने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी। मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के आतंक के दौर में भी, मेवाड़ के पराक्रमी राजा राणा राजसिंह ने एक विशिष्ट मूर्ति की रक्षा की थी—यह वही श्रीनाथजी की मूर्ति है जो आज नाथद्वारा में स्थित भव्य श्रीनाथजी मंदिर में प्रतिष्ठित है।
आइए, श्रद्धा और इतिहास से भरे इस मंदिर की गहराइयों में उतरें और जानें कि क्यों यह मंदिर करोड़ों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है।
नाथद्वारा में श्रीनाथजी की आगमन कथा
17वीं सदी का भारत जब एक तरफ भक्ति की बयार बह रही थी, वहीं दूसरी ओर मुगल बादशाह औरंगजेब हिंदू मंदिरों पर कहर ढा रहा था। मथुरा के पास गोवर्धन पर्वत पर स्थित श्रीनाथजी का मंदिर भी उसके इस विनाश अभियान की चपेट में आ गया। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की इस दिव्य प्रतिमा को हाथ लगाने से पहले, वैष्णव आचार्य दामोदरदास बैरागी ने अपने धर्म और आस्था की रक्षा का प्रण लिया।
वल्लभ संप्रदाय से जुड़े दामोदरदास जी ने श्रीनाथजी की प्रतिमा को बैलगाड़ी में रखकर वहां से सुरक्षित निकाल लिया। वे विभिन्न राजाओं से गुहार लगाते रहे कि कोई इस दिव्य प्रतिमा को शरण दे, लेकिन औरंगजेब के भय से सभी पीछे हटते गए।
लेकिन जहां बाकी राजा झिझक रहे थे, वहीं मेवाड़ के राणा राजसिंह ने हिम्मत दिखाई।
पहले ही औरंगजेब को ठुकरा चुके राणा राजसिंह ने जब सुना कि श्रीनाथजी की प्रतिमा मार्ग में है, उन्होंने तुरंत शरण देने का फैसला किया। यह यात्रा मात्र एक मूर्ति की नहीं थी, यह धर्म, साहस और संस्कृति की रक्षा की यात्रा थी—जो पूरे 32 महीने चली।
जब बैलगाड़ी नाथद्वारा के पास सिहाड़ गांव पहुंची, वहां अचानक उसका पहिया कीचड़ में फंस गया। इसे महज संयोग नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा माना गया—कि वे यहीं विराजमान होना चाहते हैं। यहीं पर राणा राजसिंह ने मंदिर निर्माण का आदेश दिया।
1672 में बनास नदी के किनारे, उसी स्थान पर भव्य मंदिर की स्थापना हुई, और सिहाड़ गांव ‘नाथद्वारा’ बन गया।
नाथद्वारा का यह मंदिर सिर्फ एक स्थापत्य नहीं है, यह उस भावनात्मक यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जिसने लाखों भक्तों की आस्था को स्थायी स्वरूप दिया।
इस ऐतिहासिक यात्रा की कुछ खास झलकियाँ:
- श्रीनाथजी की चरण पादुकाएं आज भी कोटा से 10 किमी दूर ‘चरण चौकी’ नामक स्थान पर पूजनीय हैं।
- जोधपुर के पास चौपासनी गांव में, जहां श्रीनाथजी की मूर्ति कुछ समय तक रुकी थी, वहां भी आज मंदिर बना हुआ है।
श्रीनाथजी की लीला: एक कथा जो नियम बन गई
“जहां भक्ति है, वहां लीला है… जहां श्रीनाथजी हैं, वहां श्रद्धा है।”
नाथद्वारा मंदिर से जुड़ी एक अत्यंत रोचक कथा भक्तों के बीच आज भी जीवंत है। कहा जाता है कि एक बार श्रीनाथजी, जो बाल स्वरूप में भगवान श्रीकृष्ण माने जाते हैं, दिनभर अपने भक्तों के साथ विहार करते रहे। जब वे मंदिर में लौटने लगे, तो उन्होंने देखा कि वेदी के पट (दरवाज़े) समय से पहले ही खुल चुके हैं और शंखनाद हो चुका है।
भगवान को यह जल्दबाज़ी रुचिकर नहीं लगी, और कथा अनुसार उन्होंने अपना वस्त्र फाड़ दिया — यह संकेत देने के लिए कि उन्हें लौटने का पूरा समय नहीं दिया गया। उस दिन से एक परंपरा शुरू हुई, जो आज भी निभाई जाती है।
अब जब भी वेदी खोली जाती है, शंख बजने के बाद कुछ क्षणों तक प्रतीक्षा की जाती है — मानो पुजारी और भक्तगण स्वयं श्रीनाथजी को आमंत्रण दे रहे हों कि “हे ठाकुरजी, कृपया अपनी बाल लीलाओं से निवृत्त होकर अब मंदिर में पधारें।”
यह सिर्फ एक नियम नहीं, एक रिश्ते का प्रतीक है — ईश्वर और भक्त के बीच उस आत्मीय बंधन का, जिसमें अनुशासन भी प्रेम से उपजता है।
श्रीनाथजी: केवल मूर्ति नहीं, दिव्यता का सजीव स्वरूप
सेवायतजन (सेवक) श्रीनाथजी को केवल भगवान श्रीकृष्ण का एक रूप नहीं मानते — वे उन्हें ‘निकुंज नायक’ कहते हैं, यानी उस दिव्य ब्रह्म की संपूर्ण छवि, जो प्रेम, शक्ति और करुणा का संगम है।
ऐसा कहा जाता है कि श्रीनाथजी में भगवान कृष्ण के सभी स्वरूप समाहित हैं — बालकृष्ण, यशोदानंदन, राधा के प्रियतम और गोवर्धनधारी।
इसलिए कुछ भक्त उन्हें राधा और कृष्ण, दोनों का समेकित स्वरूप मानते हैं — ‘श्री राधानाथजी’।
यह भक्ति परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि जब ईश्वर अपने भक्तों के बीच होते हैं, तो वे नियमों से नहीं, प्रेम से चलते हैं।
नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर का महत्व
राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर न केवल एक भव्य धार्मिक स्थल है, बल्कि यह वल्लभ संप्रदाय की आस्था, परंपरा और दिव्यता का केंद्र भी है। यहां श्रीकृष्ण बालस्वरूप में श्रीनाथजी के रूप में पूजे जाते हैं, और उन्हें प्रतिदिन राजसी ठाठ से पूजा जाता है।
प्रभु की सेवा: एक शाही दिनचर्या
हर दिन की शुरुआत वीणा वादन से होती है। मंदिर का एक संगीतज्ञ प्रभु को जगाने के लिए प्रातः काल वीणा बजाता है। इसके पश्चात दर्शन की विभिन्न झांकियों में भक्तजन शास्त्रीय संगीत गाते हैं, जिससे संपूर्ण वातावरण भक्तिभाव में डूब जाता है। श्रीनाथजी को हर झांकी में अलग वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं, जिन्हें बहुत कम ही दोहराया जाता है।
विशेष बात यह है कि श्रीनाथजी को जो जल अर्पित किया जाता है, वह यमुना से ही लाया गया होता है, ताकि सेवा का प्रत्येक अंग शुद्ध और पवित्र बना रहे।
गौसेवा का महत्व
मंदिर प्रशासन के पास लगभग 500 गायें हैं, जिनका पालन-पोषण विशेष रूप से भगवान की सेवा हेतु किया जाता है। इनमें से एक गाय को श्रीनाथजी की “अपनी गाय” माना जाता है, जो उस वंश से मानी जाती है जिसने पीढ़ियों से भगवान की सेवा की है।
इन्हीं गायों के दूध से मंदिर में भगवान को अर्पित करने हेतु मिष्ठान्न और भोग तैयार किए जाते हैं। इस सेवा में केवल स्वाद नहीं, बल्कि परंपरा और श्रद्धा की गहराई भी जुड़ी होती है।
सजीव परंपरा का केंद्र
नाथद्वारा मंदिर केवल पूजा-पाठ का स्थान नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है, जहां हर दिन, हर झांकी, हर पोशाक और हर भोग में प्रभु के प्रति अपार प्रेम और समर्पण प्रकट होता है। यह वह स्थान है जहां ईश्वर को केवल स्मरण नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें प्रतिदिन सम्मानपूर्वक जिया जाता है
नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर दर्शन और आरती समय
| पूजा / दर्शन का प्रकार | प्रारंभ समय | समाप्ति समय |
| मंदिर खुलने का समय (सुबह) | 5:30 AM | 12:30 PM |
| मंदिर खुलने का समय (शाम) | 4:00 PM | 8:30 PM |
| मंगला आरती | 5:40 AM | 6:20 AM |
| श्रृंगार आरती | 7:15 AM | 7:45 AM |
| ग्वाल आरती | 9:15 AM | 9:30 AM |
| राजभोग आरती | 11:20 AM | 12:05 PM |
| उत्थापन आरती और भोग | 3:40 PM | 4:00 PM |
| आरती दर्शन (शाम) | 5:00 PM | 6:15 PM |
श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग से
नाथद्वारा पहुंचने का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है, जो नाथद्वारा से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अहमदाबाद से उदयपुर के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। हवाई अड्डे से टैक्सी या कैब की सहायता से नाथद्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से
नाथद्वारा सड़क मार्ग से भी बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। उदयपुर से इसकी दूरी मात्र 48 किलोमीटर है और यहाँ से नियमित टैक्सी और बस सेवाएं उपलब्ध हैं। राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के कई बड़े शहरों से नाथद्वारा के लिए सीधी बसें भी चलती हैं। निजी वाहन से भी पहाड़ियों और हरियाली से भरपूर रास्ता अत्यंत रमणीय है।
रेल मार्ग से
रेल द्वारा यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए नजदीकी मुख्य स्टेशन है मारवाड़ जंक्शन, जो पश्चिम रेलवे की अहमदाबाद-दिल्ली लाइन पर स्थित है। यहाँ से एक रेल लाइन मावली तक जाती है और मावली से 15 किलोमीटर पहले नाथद्वारा स्टेशन आता है, जो नाथद्वारा शहर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नाथद्वारा स्टेशन से मंदिर तक के लिए टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं। इसके अलावा कांकरोली रेलवे स्टेशन, जो नाथद्वारा से लगभग 15 किलोमीटर दूर है, भी एक विकल्प है।