कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ – इतिहास, आरती समय और दर्शन विवरण

एक भव्य मंदिर — जहाँ देवी को सोने के आभूषणों से विशेष श्रृंगार किया जाता है। इतनी बड़ी मात्रा में स्वर्णाभूषण होने के कारण पुलिस विभाग की ओर से पाँच सशस्त्र जवानों की सुरक्षा में यह श्रृंगार सम्पन्न होता है। ये जवान पूरे नवरात्रि के नौ दिनों तक मंदिर में तैनात रहते हैं। इतिहास के पन्नों में झाँकें तो यह मंदिर अनेक युद्धों का साक्षी रहा है। मान्यताओं के अनुसार, पुराने समय में राजा इस मंदिर की मूर्ति को अपने साथ युद्धभूमि में भी ले जाते थे। एक समय ऐसा भी आया जब आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया, परंतु समय की चुनौतियों का सामना करता यह मंदिर आज भी चित्तौड़गढ़ की शान बना हुआ है। हम बात कर रहे हैं — चित्तौड़गढ़ में स्थित कालिका माता मंदिर की। आइए, जानते हैं इस ऐतिहासिक और दिव्य मंदिर के बारे में विस्तार से।

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कालिका माता मंदिर, चित्तौड़गढ़ इतिहास 

राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित चित्तौड़गढ़ किला भारत का सबसे बड़ा किला माना जाता है। यह किला केवल एक स्थापत्य चमत्कार ही नहीं है, बल्कि यह राजपूती साहस, बलिदान और मातृभूमि के लिए प्रेम का जीवंत प्रतीक भी है।

इसकी नींव 7वीं शताब्दी में मौर्य वंश ने रखी थी, और इसका नाम चित्रांगद मौर्य के नाम पर पड़ा, जैसा कि उस युग के सिक्कों से प्रमाणित होता है। बाद में, 734 ईस्वी में बप्पा रावल ने इस किले को मेवाड़ की राजधानी बनाया। कुछ ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, यह किला बप्पा रावल को सोलंकी वंश की राजकुमारी के दहेज के रूप में प्राप्त हुआ था।

लगभग 834 वर्षों तक यह किला मेवाड़ शासकों की शक्ति और गौरव का केंद्र बना रहा।

चित्तौड़ की त्रासदियां और आत्मबलिदान

इस किले ने इतिहास में तीन बड़ी लड़ाइयों का सामना किया:

  • 1303 में अलाउद्दीन खिलजी,
  • 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह,
  • और 1567 में मुगल सम्राट अकबर द्वारा आक्रमण।

हर युद्ध में चित्तौड़ के वीरों ने पराक्रम की मिसाल पेश की। जब पराजय निश्चित लगी, तो किले की स्त्रियों ने जौहर करके अपने सम्मान की रक्षा की — यह परंपरा आज भी चित्तौड़ के गौरव और त्याग की मिसाल मानी जाती है। 1568 में अकबर द्वारा किए गए विनाश के बाद यह किला पुनः नहीं बसा, लेकिन 1905 में आंशिक रूप से पुनर्निर्मित किया गया।

यह किला आज भी राष्ट्रीयता, साहस, और बलिदान का प्रतीक माना जाता है — एक ऐसी ज़मीन जहाँ सम्मान के लिए प्राण त्यागना जीवन से अधिक मूल्यवान था।

मंदिर की स्थापना और महत्त्व

चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित कालिका माता मंदिर शक्ति की देवी भद्रकाली को समर्पित है। माना जाता है कि यह मंदिर 14वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था, लेकिन इसका निर्माण 8वीं शताब्दी के एक प्राचीन सूर्य मंदिर के खंडहरों पर किया गया था, जो उस समय सूर्य उपासना का प्रमुख स्थल हुआ करता था।

मंदिर आज भी भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है — विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो देवी के उग्र स्वरूप से शक्ति और संरक्षण की कामना करते हैं।

कालिका माता मंदिर, चित्तौड़गढ़ वास्तुकला 

कालिका माता मंदिर का मूल निर्माण 8वीं शताब्दी में बप्पा रावल द्वारा सूर्य देव की उपासना के लिए करवाया गया था। यह मंदिर तब गुप्त कालीन स्थापत्य शैली से प्रेरित था, जिसकी झलक आज भी इसकी शिल्पकला में देखी जा सकती है। हालाँकि, 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए गए पहले आक्रमण में मंदिर को काफी नुकसान हुआ। इसके बाद 14वीं शताब्दी में राणा हम्मीर ने इसे देवी काली को समर्पित करते हुए पुनः निर्मित करवाया।

संरचना और प्रमुख विशेषताएं

मंदिर एक ऊँचे पोडियम पर स्थित है और इसकी संरचना में पाँच कक्ष शामिल हैं, जिनकी छतें अब नष्ट हो चुकी हैं। मंदिर की दीवारें साधारण हैं, लेकिन छज्जों (cornices) पर कमल के फूलों की जटिल नक्काशी आकर्षित करती है।

गर्भगृह की दीवारों पर सूर्य देवता की छवियाँ बनी हुई हैं, जिन्हें अप्सराओं और उनकी सहचरी देवियों से घिरा हुआ दिखाया गया है। यही नहीं, चंद्र देवता की आकृतियाँ भी दीवारों पर अंकित हैं, जो स्थापत्य में सूर्य-चंद्र दोनों की पूजा के समन्वय को दर्शाता है।

स्तंभ, छत और द्वार की नक्काशी

मंदिर की छत समतल है, जो चतुरस्तंभीय (quadrangular) खंभों द्वारा समर्थित है। इन स्तंभों पर की गई जटिल नक्काशी और ब्रैकेट डिजाइन स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का प्रमाण है।

गर्भगृह का द्वार-चौखट (doorframe) अत्यंत भव्य है। इसमें चार नक्काशीदार पट्टियाँ (bands) हैं, जिनका मुख्य विषय सूर्य देव हैं। द्वार के दोनों ओर विस्तृत पैनल्स में अन्य देवताओं की छवियाँ उकेरी गई हैं, जिनके केंद्र में फिर से सूर्य देवता को प्रमुखता दी गई है। इस पूरी बनावट में गुप्त कालीन सौंदर्य और भक्ति का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है।

जोगेश्वर महादेव मंदिर और परिसर की भव्यता

कालिका माता मंदिर के परिसर में एक और प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसे जोगेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है — यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर का मुख्य प्रवेश द्वार चट्टान पर स्थित है, जिससे मंदिर और भी प्रभावशाली प्रतीत होता है।

खंडहरों में भी जीवंत कला

हालाँकि कालिका माता मंदिर अब आंशिक रूप से खंडहर रूप में है, लेकिन इसकी मंडप, प्रवेश द्वार, छत और स्तंभों पर की गई उत्कृष्ट नक्काशी आज भी आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यह मंदिर स्थापत्य प्रेमियों और इतिहासकारों के लिए एक अमूल्य धरोहर है जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है।

कालिका माता मंदिर, चित्तौड़गढ़ आरती समय 

विवरणसमय / जानकारी
मंदिर खुलने का समयप्रतिदिन खुला रहता है
प्रातःकाल06:00 AM – 12:00 PM
सायंकाल04:00 PM – 08:00 PM
प्रवेश शुल्कशून्य (निःशुल्क प्रवेश)

कालिका माता मंदिर के आसपास के प्रमुख पर्यटक स्थल

अगर आप चित्तौड़गढ़ में स्थित कालिका माता मंदिर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो यह जानना रोचक होगा कि इस मंदिर के आस-पास भी कई दर्शनीय स्थल मौजूद हैं। चित्तौड़गढ़ केवल अपने ऐतिहासिक किले और वीरगाथाओं के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यह धार्मिक स्थलों, स्मारकों, उद्यानों और प्राकृतिक सौंदर्य से भी समृद्ध है। आप अपनी यात्रा को और भी यादगार बना सकते हैं यदि आप इन स्थानों को भी देखने का समय निकालें:

कालिका माता मंदिर के नज़दीक घूमने लायक प्रमुख स्थल निम्नलिखित हैं:

  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग – भारत का सबसे विशाल और ऐतिहासिक किला, जो मेवाड़ की गौरवगाथा को दर्शाता है।
  • विजय स्तम्भ – महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया यह स्तम्भ विजय की प्रतीक है।
  • कीर्ति स्तम्भ – यह जैन स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है।
  • महा सती – एक प्रमुख स्मारक स्थल जहाँ सती प्रथा का स्मरण किया जाता है।
  • गौ मुख कुंड – एक प्राकृतिक जलस्रोत जो किले के भीतर स्थित है।
  • राणा कुंभा पैलेस – इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र, जो कभी मेवाड़ के महाराणा का निवास था।
  • मेनाल शिव मंदिर – एक प्राचीन और शांत स्थल, जो खासकर मानसून के समय सुंदर दिखाई देता है।
  • रतन सिंह पैलेस – सुंदर झील और स्थापत्य कला के साथ जुड़ा यह महल घूमने लायक है।
  • फतेह प्रकाश पैलेस – वर्तमान में संग्रहालय के रूप में कार्यरत, यह महल कला प्रेमियों को पसंद आता है।
  • पद्मिनी पैलेस – रानी पद्मिनी की वीरता की गाथा से जुड़ा हुआ यह महल प्रसिद्ध है।
  • श्यामा मंदिर – एक और धार्मिक स्थल जो भक्ति और शांति की अनुभूति देता है।
  • शतीस देओरी मंदिर – जैन धर्म से जुड़ा यह मंदिर अपनी नक्काशी के लिए जाना जाता है।
  • सांवरियाजी मंदिर – चित्तौड़गढ़ से थोड़ी दूरी पर स्थित यह कृष्ण भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • मीरा मंदिर – भक्त शिरोमणि मीरा बाई के जीवन से जुड़ा यह स्थान भक्तों को आकर्षित करता है।
  • भैंसरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य – वन्यजीव प्रेमियों के लिए उपयुक्त, यहाँ शांति और प्रकृति का अद्भुत मेल है।
  • बस्सी वन्यजीव अभयारण्य – यह अभयारण्य भी प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थल है।

कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ कैसे पहुँचे 

फ्लाइट से कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ कैसे पहुँचे

अगर आप हवाई मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं, तो चित्तौड़गढ़ का निकटतम हवाई अड्डा डबोक एयरपोर्ट, उदयपुर है, जो मंदिर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

  • देश के कई प्रमुख शहरों से उदयपुर के लिए नियमित फ्लाइट्स उपलब्ध हैं।
  • एयरपोर्ट से चित्तौड़गढ़ के लिए टैक्सी, कैब या बस की सुविधा आसानी से मिल जाती है।
  • सड़क मार्ग द्वारा 1.5 से 2 घंटे में चित्तौड़गढ़ पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग से कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ कैसे पहुँचे

चित्तौड़गढ़ राज्य के प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, उदयपुर, कोटा, जोधपुर और पड़ोसी राज्यों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

  • राजस्थान रोडवेज की बस सेवाएं नियमित रूप से उपलब्ध हैं।
  • निजी कार, टैक्सी, डीलक्स बसें और एसी कोच के माध्यम से भी आप आरामदायक यात्रा कर सकते हैं।
  • चित्तौड़गढ़ पहुंचने के बाद, किले और कालिका माता मंदिर तक के लिए स्थानीय वाहन (ऑटो/टैक्सी) की सुविधा मौजूद है।

ट्रेन से कालिका माता मंदिर चित्तौड़गढ़ कैसे पहुँचे

अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं, तो चित्तौड़गढ़ रेलवे जंक्शन आपका गंतव्य रहेगा, जो कालिका माता मंदिर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर है।

  • यह रेलवे स्टेशन दक्षिणी राजस्थान का एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है, जो देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
  • स्टेशन से मंदिर तक के लिए आपको टैक्सी, ऑटो या लोकल ट्रांसपोर्ट आसानी से मिल जाता है।
  • मंदिर तक पहुँचने में स्टेशन से 15–20 मिनट का समय लगता है।

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