अगर हम गिनती करने निकले तो भारत में सिर्फ गिने चुके मंदिर होंगे जो किसी मनमोहक नज़ारों के बीच मौजूद हो | इन्ही में से एक मंदिर है जीण माता मंदिर(jeen mata temple), जो स्थित है शेखावाटी इलाके में जंगल में तीन छोटी पहाड़ियों के बीच | और क्या खासियत है इस मंदिर की और कैसे इस मंदिर में खुद औरंगज़ेब अचंभित हो गया था| आइये जानते है विस्तार में|
जीण माता मंदिर का इतिहास
(Jeen mata mandir history in hindi)लोक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में एक दिन एक स्थानीय गड़रिया (चरवाहा) को स्वप्न में माता जी के दर्शन हुए। माता ने उसे उस स्थान पर जाकर अपनी प्रतिमा खोजने का निर्देश दिया जहाँ अब मंदिर स्थित है, और वहाँ उनके सम्मान में एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया।
स्वप्न के अनुसार गड़रिया जब उस स्थान पर पहुँचा, तो सचमुच वहाँ माता जी की प्रतिमा मिली। श्रद्धा और भक्ति से प्रेरित होकर उस स्थान पर माता जी का मंदिर बनवाया गया, जो कि 12वीं शताब्दी में निर्मित हुआ माना जाता है। समय के साथ इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार और विस्तार किया गया, और आज यह एक विशाल और भव्य मंदिर परिसर के रूप में जाना जाता है।
मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थित हैं, जो इसे और भी आध्यात्मिक और आकर्षक बनाते हैं। मुख्य मंदिर सफेद संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है, जिसकी दीवारों और खंभों पर की गई सुंदर नक्काशी इसकी स्थापत्य कला की अद्भुत मिसाल है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो विशाल हाथियों की मूर्तियाँ श्रद्धालुओं का स्वागत करती हैं, जो उसकी गरिमा को और बढ़ा देती हैं। गर्भगृह में विराजमान जीण माता की प्रतिमा अत्यंत दिव्य स्वरूप में दिखाई देती है – चार भुजाओं वाली देवी जो एक सिंह की सवारी कर रही हैं। यह रूप शक्ति, साहस और रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
वास्तुकला
जीण माता मंदिर की वास्तुकला स्वयं में एक अद्भुत चमत्कार है, जो पारंपरिक राजस्थानी शिल्पकला की श्रेष्ठता को दर्शाती है। जैसे ही आप मंदिर की ओर बढ़ते हैं, सुंदर नक्काशी, जटिल डिज़ाइन और चमकदार रंगों से सजी इसकी भव्य संरचना आपको मंत्रमुग्ध कर देती है।
मंदिर का विशाल प्रवेश द्वार अपने सजावटी मेहराबों और सुघड़ तराशे गए स्तंभों के साथ इस आध्यात्मिक यात्रा की गरिमामयी शुरुआत करता है। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि शिल्प और श्रद्धा का सम्मिलन है, जो हर दर्शक को श्रद्धा और गर्व से भर देता है।
औरंगज़ेब और जीण माता (Auragnzeb Story in hindi)
इसका वर्णन इस लेख के शुरू में ही है, और यह एक दिलचस्प कथा है| कहानी के अनुसार जीण माता ने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को अपने दिव्य चमत्कार से पराजित किया था। बुरडक गोत्र के बड़वा श्री भवानीसिंह राव द्वारा संकलित अभिलेखों में इस घटना का उल्लेख मिलता है।
बताया जाता है कि औरंगज़ेब ने शेखावाटी क्षेत्र के प्रमुख मंदिरों को ध्वस्त करने के उद्देश्य से एक विशाल सेना भेजी थी। इस सेना ने सबसे पहले हर्ष पर्वत स्थित भगवान शिव और हर्षनाथ भैरव के मंदिर को तोड़ा और फिर जीण माता के मंदिर की ओर बढ़ी। उस समय हर्ष मंदिर की सेवा गुर्जर समुदाय करता था, जबकि जीण माता की पूजा तिगाला जाटों द्वारा की जाती थी।
जैसे ही सेना जीण माता मंदिर के समीप पहुँची, माता ने अपने चमत्कारी स्वरूप से उनका मार्ग रोक दिया। कहते हैं कि मंदिर पर हमले के प्रयास के ठीक बाद, अचानक हजारों की संख्या में मधुमक्खियों का झुंड (भंवरे) प्रकट हुआ और मुगल सेना पर टूट पड़ा। ये मक्खियाँ इतनी विकराल थीं कि उन्होंने पूरी सेना को मैदान छोड़ने पर मजबूर कर दिया। सेना के सैनिक दिल्ली तक उनका पीछा करते हुए भागे, और उन्हें भारी क्षति उठानी पड़ी।
इस चमत्कार के बाद से जीण माता को “भंवरों वाली देवी” या “भौरों की देवी” कहा जाने लगा।
एक अन्य लोककथा के अनुसार, इस घटना के कुछ समय बाद औरंगजेब को कुष्ठ रोग हो गया। जब उसे अपनी भूल का अहसास हुआ, तो वह स्वयं जीण माता मंदिर आया और क्षमा याचना की। उसने वचन दिया कि यदि वह रोगमुक्त हुआ, तो माता के मंदिर में एक स्वर्ण छत्र चढ़ाएगा। कहा जाता है कि आज भी वह स्वर्ण छत्र मंदिर में स्थापित है।
इतना ही नहीं, औरंगजेब ने माता की शक्ति को स्वीकारते हुए मंदिर में अखंड दीप प्रज्वलित रखने की व्यवस्था भी की। इसके लिए दिल्ली दरबार से हर महीने सवा मन तेल भेजा जाने लगा। यह अखंड ज्योति आज भी मंदिर में निरंतर जल रही है, जो श्रद्धा और चमत्कार का प्रतीक मानी जाती है।
इस घटना के बाद से जीण माता की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और उनकी महिमा में अपार वृद्धि हुई। माता के भक्त आज भी इस चमत्कार को आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।
जीण माता किसकी कुलदेवी हैं?
जीण माता को प्रमुख रूप से शेखावत वंश की कुलदेवी माना जाता है। शेखावत राजपूतों की पीढ़ियों से माता के प्रति गहरी श्रद्धा रही है और वे उन्हें अपनी रक्षक देवी मानते हैं।
इसके अतिरिक्त, राजस्थान के अनेक अन्य राजपूत वंशों, जाट, ब्राह्मण, वैश्य, और कई अन्य जातियों के लोग भी जीण माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। माता का यह मंदिर आस्था का ऐसा केन्द्र है, जहाँ हर जाति, वर्ग और क्षेत्र के भक्त एक समान श्रद्धा से दर्शन करने आते हैं।
जीण माता की लोकमान्यता केवल कुलदेवी तक सीमित नहीं, बल्कि वे समस्त भक्तों की आस्था और विश्वास की प्रतीक बन चुकी हैं।
जीण माता मंदिर का नवरात्रि मेला
नवरात्रि के पवित्र पर्व पर जीण माता मंदिर में आस्था, श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। हर वर्ष चैत्र सुदी एकम से नवमी और आसोज सुदी एकम से नवमी तक यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
नारियल चढ़ाने की विशेष परंपरा
जीण माता मंदिर में नारियल चढ़ाने की परंपरा अत्यंत लोकप्रिय और विशेष मानी जाती है। नवरात्रि के दिनों में मंदिर परिसर में लाखों की संख्या में चढ़े नारियल आस्था की उस लहर का प्रतीक हैं, जो भक्तों को माँ के चरणों तक खींच लाती है।
राजस्थान और देशभर से उमड़ती है श्रद्धा की भीड़
इन मेलों में राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से भक्त जीण माता के दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर के बाहर सपेरे अपनी बीन की धुन पर झूमते हैं, भक्त रात्रि जागरण करते हैं और मंदिर प्रांगण को भक्ति रस से सराबोर कर देते हैं।
झडूला (केश मुंडन) और दान की परंपरा
माँ के भक्त विशेषकर राजस्थान के दूरस्थ इलाकों से अपने बच्चों का झडूला (केश मुंडन) करवाने आते हैं। यह एक आस्था से जुड़ी परंपरा है, जिसके तहत बालक का पहला मुंडन जीण माता के मंदिर में करवाया जाता है। साथ ही, भक्त विभिन्न प्रकार के दान भी करते हैं।
अखंड दीप – विश्वास की लौ
मंदिर में एक विशेष आकर्षण है – अखंड दीप, जो बारहों मास निरंतर जलता रहता है। यह दीप माँ की कृपा का प्रतीक है, जो यह विश्वास दिलाता है कि माँ जीणमाता हर पल अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखती हैं।
दर्शन का समय
दिन | दर्शन समय | प्रातः आरती | सायं आरती |
सोमवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
मंगलवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
बुधवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
गुरुवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
शुक्रवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
शनिवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
रविवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
जीण माता मंदिर के पास दर्शनीय स्थल
जीण माता मंदिर के दर्शन के साथ-साथ आप इसके आसपास स्थित कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की यात्रा भी कर सकते हैं। ये स्थान न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि राजस्थान की समृद्ध विरासत और वास्तुकला की भी झलक दिखाते हैं।
लक्ष्मणगढ़ किला
सीकर से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित यह किला राजा लक्ष्मण सिंह द्वारा बनवाया गया था। पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह किला आज भी अपने गौरवशाली अतीत की गवाही देता है और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
देवगढ़ किला
देवगढ़ का यह राजसी महल लगभग 2100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। शांत झीलों और प्राचीन प्राकृतिक दृश्यों से घिरा यह स्थान राजस्थानी शाही वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।
हर्षनाथ मंदिर
सीकर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था और यह मंदिर उन प्राचीन शिव मंदिरों के अवशेषों को भी संजोए हुए है।
खाटू श्याम जी मंदिर
सीकर से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित खाटू गांव में भगवान श्याम (कृष्ण के रूप) का यह प्रसिद्ध मंदिर सफेद पत्थरों से बना हुआ है। यह श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और यहां हर वर्ष लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
कैसे पहुँचे
सड़क मार्ग:
जीण माता मंदिर राजस्थान के सीकर ज़िले में स्थित है और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप निजी वाहन, टैक्सी या बस के माध्यम से मंदिर तक आसानी से पहुँच सकते हैं।
सीकर से मंदिर की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है और मंदिर तक के लिए सीधी सड़क मार्ग सुविधा उपलब्ध है। जयपुर, दिल्ली, बीकानेर और अन्य प्रमुख शहरों से सीकर के लिए नियमित बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग
जीण माता मंदिर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन है, जो लगभग 16 किलोमीटर दूर है।
रींगस स्टेशन देश के विभिन्न हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से जयपुर, दिल्ली, जोधपुर और बीकानेर से नियमित ट्रेन सेवाएँ मिलती हैं।
रींगस से मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी या लोकल ऑटो की सुविधा आसानी से उपलब्ध है।
हवाई मार्ग
मंदिर के सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
जयपुर एयरपोर्ट देश के प्रमुख शहरों से वायु मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से आप टैक्सी, बस या ट्रेन के माध्यम से रींगस या सीकर पहुँच सकते हैं और वहाँ से मंदिर तक का सफर तय कर सकते हैं।
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जीण माता का मंदिर कहां है?
जीण माता का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यह मंदिर सीकर शहर से लगभग 29 किलोमीटर दूर दक्षिण में अरावली पर्वतमाला की तलहटी में बसा हुआ है। मंदिर के पास जीणगढ़ नाम का गांव स्थित है।
जीण माता मंदिर की दूरी
- सीकर से: लगभग 29 किमी
- जयपुर से: लगभग 120 किमी
- दिल्ली से: लगभग 300 किमी
- खाटू श्याम मंदिर से: लगभग 26 किमी
जीण माता मंदिर का समय
दिन | दर्शन समय | प्रातः आरती | सायं आरती |
सोमवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
मंगलवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
बुधवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
गुरुवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
शुक्रवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
शनिवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
रविवार | सुबह 06:00 बजे – शाम 09:00 बजे | सुबह 07:00 बजे | शाम 08:30 बजे |
जीण माता का इतिहास (इतिहास में जीण माता)
मान्यता है कि जीण माता का मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार, जीण माता एक राजकुमारी थीं जिन्होंने कठिन तपस्या की और देवी रूप में प्रकट होकर लोगों की रक्षा की। वे राजवंश की कुलदेवी बनीं और लोगों की मनोकामनाएं पूरी करने के लिए पूजी जाने लगीं।
जीण माता किसकी कुलदेवी हैं?
जीण माता को शेखावत वंश की कुलदेवी माना जाता है। इसके अलावा राजस्थान के कई अन्य राजपूत वंश और अन्य जातियों के लोग भी जीण माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं।
जीण माता मंदिर का निर्माण किसने करवाया?
ऐसी मान्यता है कि मंदिर का निर्माण राजा गंगा सिंह के काल में कराया गया था। हालांकि मंदिर का मूल रूप प्राचीन है और इसे कई बार पुनर्निर्माण व विस्तार दिया गया है।
जीण माता मंदिर के पास के प्रमुख स्थल
- खाटूश्याम जी मंदिर – लगभग 26 किमी
- हर्षनाथ मंदिर, सीकर
- सालासर बालाजी – लगभग 76 किमी
- नीमकाथाना व खंडेला क्षेत्र
विशेष: नवरात्रि में जीण माता दर्शन
चैत्र और आश्विन नवरात्रि के समय लाखों की संख्या में श्रद्धालु जीण माता के दर्शन के लिए आते हैं। इन नौ दिनों में मंदिर परिसर में विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और मेले का आयोजन होता है।