उदयपुर की शान: जानिए जगदीश मंदिर का गौरवशाली इतिहास

(Jagdish mandir Udaipur in hindi) उदयपुर शहर का नाम आप अक्सर वाहा मौजूद महल और झीलों से जोड़ेंगे | लेकिन ये शहर इससे कहीं बढ़कर कहानियाँ और ख़ूबसूरती समेटे हुए है| इस शहर के हृदय में स्थित, जगदीश मंदिर, जो एक भव्य और आध्यात्मिक स्थल है जो न केवल शहर के धार्मिक जीवन का केंद्र है बल्कि इसकी स्थापत्य कला भी हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देती है। चलिए जाने इस पावन मंदिर के बारे में |

जगदीश मंदिर का इतिहास (Jagdish mandir udaipur history in hindi)

इस भव्य मंदिर का निर्माण वर्ष 1651 में महाराणा जगत सिंह के शासनकाल में हुआ था, जिन्होंने 1628 से 1653 तक उदयपुर पर शासन किया। महाराणा जगत सिंह ने भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर के निर्माण पर लगभग 15 लाख रुपये की भारी-भरकम राशि खर्च की थी। यह मंदिर ‘मारू-गुजरू शैली’ का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है, जो उस युग की स्थापत्य कला और कारीगरी को दर्शाता है।

मुग़ल आक्रमण और पुनर्निर्माण

इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि मुग़ल आक्रमणकारियों ने मेवाड़ के राजाओं से मिली हार का बदला लेने के लिए इस मंदिर को क्षति पहुँचाई। उन्होंने मंदिर की अनेक मूर्तियों और जटिल नक्काशियों को तोड़ने का दुस्साहस किया। इसके पश्चात, मंदिर का पुनर्निर्माण और संरक्षण कराया गया, ताकि इसकी भव्यता फिर से लौट सके और यह आस्था का केन्द्र बना रहे।

रहस्यमयी संगमरमर की शिला

लोककथाओं के अनुसार, मंदिर के प्रांगण में स्थित संगमरमर की एक शिला में चमत्कारी शक्तियाँ मानी जाती हैं। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने कंधे, घुटने या पीठ को इस शिला पर रगड़ता है, तो उसे शीघ्र ही दर्द से राहत मिलती है। विज्ञान चाहे जो कहे, परंतु श्रद्धा और आस्था की दुनिया में चमत्कारों को नकारना कठिन होता है। यह विश्वास वर्षों से लोगों के दिलों में रचा-बसा है।

जगदीश मंदिर (Udaipur Jagdish Mandir) की वास्तुकला

कुछ मंदिरो से आपकी पहली नज़र में प्यार हो जायेगा, यह मंदिर उसमें से एक है | यह मंदिर मारू-गुर्जर शैली और इंडो-आर्यन वास्तुकला का जीवंत उदाहरण है। इस भव्य मंदिर का निर्माण वास्तुशास्त्र के नियमों को ध्यान में रखकर किया गया था, जिससे यह दिव्यता और संतुलन का प्रतीक बन गया।

Jagdish mandir Udaipur तीन मंज़िला ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है, जहाँ तक पहुँचने के लिए 32 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। प्रवेश द्वार पर ही पत्थर से बने दो विशाल हाथियों की मूर्तियाँ आगंतुकों का स्वागत करती हैं। यहीं पर एक शिलालेख भी स्थापित है, जो महाराणा जगत सिंह के योगदान को दर्ज करता है।

मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही आपकी नज़र जाती है – सज्जित स्तंभों, हवादार मंडपों, और जीवंत रंगों से सजी चित्रित दीवारों पर। हर स्तंभ पर की गई जटिल नक्काशी, उस युग के कारीगरों की कला और समर्पण को दर्शाती है। मंदिर की दोनों पहली मंज़िलों पर लगभग 50-50 स्तंभ हैं, जिनकी सजावट अद्भुत है।

मंदिर की ऊँचाई 79 फीट है, जो उदयपुर के क्षितिज पर प्रमुखता से दिखाई देता है। मंदिर के शिखर को घुड़सवारों, हाथियों, संगीतकारों और नर्तकों की मूर्तियों से सजाया गया है, जो उस समय के जीवंत सामाजिक और धार्मिक वातावरण की झलक देती हैं।

मुख्य गर्भगृह में स्थित है – भगवान विष्णु की चार भुजाओं वाली मूर्ति, जिसे एक ही काले पत्थर से तराशा गया है। यह प्रतिमा ‘भगवान जगन्नाथ’ के रूप में प्रसिद्ध है और इसे देखना किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। ऐसा माना जाता है कि इस प्रतिमा की दृष्टि से एक आध्यात्मिक आकर्षण और मानसिक शांति की अनुभूति होती है।

मुख्य मंदिर तक पहुँचने से पहले एक और विशेष आकर्षण है – गरुड़ की कांस्य प्रतिमा। गरुड़, जो आधे मानव और आधे पक्षी के रूप में चित्रित हैं, भगवान विष्णु के वाहन और द्वारपाल माने जाते हैं। उनकी उपस्थिति मंदिर में सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक है।

परिक्रमा में अन्य देवताओं के मंदिर

मुख्य मंदिर के चारों ओर बने छोटे-छोटे मंदिरों में भगवान गणेश, भगवान शिव, सूर्य देव और देवी शक्ति की मूर्तियाँ स्थापित हैं। यह मंदिर परिसर श्रद्धालुओं को संपूर्ण धार्मिक अनुभव प्रदान करता है।

मंदिर में एक भव्य मंडप (प्रार्थना कक्ष), एक आँगन, और एक पिरामिडीय शिखर भी है, जो इसकी वास्तुशैली में चार चाँद लगाते हैं। मंदिर की हर दीवार, हर स्तंभ, हर आकृति एक कहानी कहती है – श्रद्धा, कला और शांति की।

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जगदीश मंदिर उदयपुर – दर्शन समय

दिनगर्मी के समय सर्दी के समय 
सोमवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00
मंगलवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00
बुधवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00
गुरुवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00
शुक्रवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00
शनिवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00
रविवारसुबह 5:00 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:30सुबह 5:30 – दोपहर 2:30 शाम 4:00 – रात 10:00

जगदीश मंदिर उदयपुर – आरती के समय

आरती का नामसमय
मंगला आरतीसुबह 4:30 बजे से 5:00 बजे तक
धूप आरतीसुबह 7:45 बजे से 9:00 बजे तक
श्रृंगार आरतीसुबह 10:15 बजे से 11:00 बजे तक
राजभोग आरतीदोपहर 11:30 बजे से 12:00 बजे तक
ग्वाल आरतीशाम 5:30 बजे से 6:00 बजे तक
संध्या आरतीशाम 6:30 बजे से 7:45 बजे तक
शयन आरतीरात 8:15 बजे से 8:45 बजे तक

जगदीश मंदिर, उदयपुर – कैसे पहुँचें

सड़क मार्ग

(Udaipur Jagdish mandir) राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राज्य परिवहन बस सेवाएं नियमित रूप से उदयपुर तक चलती हैं। यदि आप स्थानीय संस्कृति और लोगों से जुड़ना चाहते हैं, तो शेयर टैक्सी या बस एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह विकल्प किफायती भी है और यात्राओं को सामाजिक अनुभव में बदल देता है।

प्रमुख शहरों से उदयपुर सड़क मार्ग द्वारा:

  • जयपुर से: लगभग 400 किलोमीटर (6-7 घंटे की यात्रा)
  • अहमदाबाद से: लगभग 260 किलोमीटर (5-6 घंटे की यात्रा)
  • मुंबई से: लगभग 750 किलोमीटर (12-14 घंटे की यात्रा)
  • दिल्ली से: लगभग 650 किलोमीटर (10-12 घंटे की यात्रा)

रेल मार्ग 

उदयपुर देश के कई प्रमुख शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है जैसे – दिल्ली, जयपुर, अजमेर, चित्तौड़गढ़, अहमदाबाद और जोधपुर। निकटतम रेलवे स्टेशन उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन है, जो जगदीश मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से आप ऑटो रिक्शा या टैक्सी द्वारा मंदिर आसानी से पहुँच सकते हैं।

हवाई मार्ग से 

महाराणा प्रताप हवाई अड्डा (डबोक एयरपोर्ट), उदयपुर का घरेलू एयरपोर्ट है और यह मंदिर से लगभग 20-25 मिनट की दूरी पर है। देश के प्रमुख शहरों से नियमित उड़ानें यहाँ आती हैं। एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है, जो आपको आराम से मंदिर तक पहुँचा देती है।

जगदीश मंदिर, उदयपुर Directions

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