माउंट आबू का दिल: दिलवाड़ा जैन मंदिरों का इतिहास, कला और आध्यात्मिकता
राजस्थान जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में हिल स्टेशन का होना किसी चमत्कार से कम नहीं है — और माउंट आबू वही चमत्कार है। परंतु माउंट आबू की पहचान केवल ठंडी वादियों और सुंदर पहाड़ियों से नहीं है; इसकी आत्मा बसती है दिलवाड़ा जैन मंदिर में। सदियों पुराना यह मंदिर न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि श्रद्धा, संयम और शांति का भी प्रतीक है। आइए, जानते हैं इस अनुपम मंदिर के इतिहास, कला और आध्यात्मिकता को और भी विस्तार से।
दिलवाड़ा जैन मंदिरों का इतिहास
अरावली की शांत पहाड़ियों में बसे दिलवाड़ा मंदिर न केवल जैन वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि आत्मिक शांति का अद्वितीय अनुभव भी कराते हैं। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं सदी के बीच चालुक्य वंश के शासनकाल में हुआ था। वर्तमान में इन मंदिरों की देखरेख सेठ श्री कल्याणजी आनंदजी पेढ़ी, सिरोही द्वारा की जाती है।
a.) विमल वसाही मंदिर (आदिनाथ मंदिर)
यह मंदिर पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को समर्पित है। इसका निर्माण 1026 ईस्वी में भीमदेव प्रथम के मंत्री विमल शाह ने करवाया था। यह शुद्ध संगमरमर से निर्मित है और इसकी नक्काशी इतनी बारीक है कि पत्थर भी रेशम-सा प्रतीत होता है। बाद में 1147-49 में विमल शाह के वंशज पृथ्वीपाल ने यहां हाथीशाला (हाथी आंगन) का निर्माण करवाया।
b.) लूणा वसाही (नेमिनाथ मंदिर)
भगवान नेमिनाथ को समर्पित यह मंदिर 1230 ईस्वी में दो पूरवाड़ भाईयों – वस्तुपाल और तेजपाल द्वारा अपने दिवंगत भाई लूणिग की स्मृति में बनवाया गया। ये दोनों भाई गुजरात के वाघेला शासक वीरधवल के मंत्री थे। इस मंदिर की शोभा बढ़ाता है “कीर्ति स्तंभ”, जिसे मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने बनवाया था – यह आत्मगौरव और श्रद्धा का प्रतीक है।
c.) पितलहार मंदिर (आदिनाथ मंदिर)
यह मंदिर भी भगवान ऋषभदेव को समर्पित है, पर इसकी विशेषता है पितल (पीतल) का उपयोग। इसे अहमदाबाद के सुलतान बेगड़ा के मंत्री भीमा शाह ने 14वीं सदी में बनवाया। इस मंदिर की मूर्तियों में पीतल का अद्भुत कलात्मक उपयोग देखने को मिलता है।
d.) श्री पार्श्वनाथ मंदिर
यह तीन मंज़िला मंदिर दिलवाड़ा मंदिरों में सबसे ऊँचा शिखर रखता है। यह मंदिर ग्रे सैंडस्टोन से निर्मित है, और इसके गर्भगृह की बाहरी दीवारों पर दिक्पाल, यक्षिणियाँ, विद्यादेवी और शालभंजिकाओं की सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं — जो इसे एक जीवंत कथाचित्र की तरह बनाती हैं।
e.) महावीर स्वामी मंदिर
भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, को समर्पित यह मंदिर 1582 में बनवाया गया था। आकार में छोटा होते हुए भी इसकी नक्काशी और शांति का वातावरण इसे अत्यंत प्रभावशाली बनाता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिरों की वास्तुकला
दिलवाड़ा मंदिरों की वास्तुकला ‘मरु-गुर्जर शैली’ की अद्भुत मिसाल है, जो श्वेत संगमरमर की नक्काशी में अपनी उत्कृष्टता सिद्ध करती है। अरावली की पहाड़ियों पर समुद्रतल से 4000 फीट ऊँचाई पर स्थित ये मंदिर अपने शांत वातावरण और अद्वितीय शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध हैं। करीब 14 वर्षों में बने इन मंदिरों के निर्माण में लगभग 1500 कारीगर और 1200 श्रमिकों ने भाग लिया था। निर्माण पर कुल ₹18.53 करोड़ की लागत आई थी।
इन मंदिरों में कुल पाँच प्रमुख मंदिर शामिल हैं, जिनकी दीवारों, स्तंभों, छतों और द्वारों पर कमल की पंखुड़ियाँ, पुष्प, पशु-पक्षी, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तथा धार्मिक दृश्यों की अद्भुत कारीगरी देखने को मिलती है।
विमल वसाही मंदिर (आदिनाथ मंदिर)
यह मंदिर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) को समर्पित है और पूरी तरह सफेद संगमरमर से बना है। एक विशाल खुला प्रांगण है, जिसके चारों ओर सुंदर नक्काशीदार स्तंभ, तोरणद्वार, मंडप और उप-मंदिर हैं।
यहाँ की छतों पर कमल की पंखुड़ियों, पशु जीवन, नृत्य करती देवियाँ और तीर्थंकरों के जीवन प्रसंगों को चित्रित किया गया है। 59 देवकुलिकाओं की पंक्ति मुख्य प्रतिमा की ओर मुख किए हुए खड़ी है। मुख्य मूर्ति ‘सपारिकर पंचतीर्थी’ रूप में ऋषभदेव की है, जिनके साथ चार अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियाँ भी हैं।
नवचौकी – नौ सुंदर छतों वाला मंडप है जिसमें बारीक नक्काशीदार स्तंभ हैं।
गुढ़मंडप – यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में दो मूर्तियाँ और ऋषभदेव की पूजा हेतु एक विशेष स्थान है।
हस्तिशाला – हाथियों की कतार में शाही परिवार को दर्शाते हुए मूर्तियाँ बनी हैं।
लूणा वसाही मंदिर (नेमिनाथ मंदिर)
यह मंदिर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है। इसका रंग मंडप अद्वितीय है – केंद्रीय गुंबद से लटकता हुआ सुंदर पदक, 72 बैठे तीर्थंकरों की मूर्तियाँ और 360 मुनियों की लहरदार आकृतियाँ इस परिसर की शोभा बढ़ाती हैं।
यहाँ 47 उप-मंदिर और 130 नक्काशीदार स्तंभ हैं। चित्रों में नेमिनाथ के जीवन प्रसंगों, देवकुलिकाओं, चक्रेश्वरी देवी और श्रीकृष्ण तक के दृश्य हैं।
कीर्ति स्तंभ काले पत्थर से निर्मित है और मंदिर के बाईं ओर स्थित है।
हाथीशाला – दस संगमरमर के हाथियों की मूर्तियाँ।
देवियों की मूर्तियाँ – देरानी और जेठानी की मूर्तियाँ देवी लक्ष्मी, संभवनाथ व शांतिनाथ के साथ स्थापित हैं।
पित्तलहर मंदिर (आदिनाथ मंदिर)
यह मंदिर पंचधातु और विशेषतः पीतल (पितल) से बनी भगवान आदिनाथ की विशाल प्रतिमा के कारण ‘पित्तलहर’ कहलाता है। मुख्य गर्भगृह, गुढ़मंडप और नवचौकी मंदिर के प्रमुख भाग हैं। यहाँ यक्षी चक्रेश्वरी और यक्ष गोमुख की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।
1468-69 में यहाँ की पुरानी प्रतिमा को हटाकर नई भारी मूर्ति स्थापित की गई थी, जिसका वजन करीब 108 मण (लगभग 4 टन) है। रंग मंडप और परिक्रमा मार्ग का निर्माण अधूरा रह गया।
पार्श्वनाथ मंदिर
यह तीन मंज़िला मंदिर है और इसमें चार विशाल मंडप स्थित हैं। मुख्य मूर्ति चौमुखा पार्श्वनाथ की है।
पहली मंज़िल में चिंतामणि पार्श्वनाथ, मंगलाकर पार्श्वनाथ, मनोरथ कल्पवृक्ष पार्श्वनाथ और नौ नागों के साथ अन्य मूर्तियाँ हैं। दीवारों पर 17 तीर्थंकरों और 14 शुभ स्वप्नों के चित्र हैं, जो तीर्थंकरों की माताओं को जन्म से पूर्व आए थे।
दूसरी मंज़िल पर सुमतिनाथ, आदिनाथ, पार्श्वनाथ और देवी अम्बिका की मूर्तियाँ हैं, जबकि तीसरी मंज़िल पार्श्वनाथ को समर्पित है। माना जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में विमल वसाही और लूणा वसाही से बचे संगमरमर के टुकड़े उपयोग में लिए गए।
महावीर स्वामी मंदिर
यह मंदिर छोटा परंतु अत्यंत कलात्मक है। 1582 में निर्मित इस मंदिर की दीवारों पर शिलालेख हैं और 1764 में सिरोही के कलाकारों द्वारा बनी चित्रकला से सजाया गया है।
यहाँ की चित्रकारी में नृत्य करते हुए पात्र, दरबार के दृश्य, फूल, घोड़े, कबूतर और हाथी दर्शाए गए हैं। गर्भगृह में भगवान महावीर के साथ अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं। बाहर एक संगमरमर की चौकोर पट्टी में त्रिकोणाकार पत्थर जड़ा है, जिस पर 133 लघु तीर्थंकर खुदे हैं और बीच की मूर्ति सबसे बड़ी है।
घूमने का सर्वोत्तम समय
दिलवाड़ा जैन मंदिरों की सुंदर तस्वीरें इंटरनेट पर देखकर आप इस बात का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वहां की जलवायु कब सबसे अनुकूल रहती है।
हालांकि माउंट आबू अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ठंडी जलवायु के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन गर्मियों के महीनों में तापमान कभी-कभी बढ़ सकता है। ऐसे में यदि आप इस पर्वतीय स्थल की असली शांति और सौंदर्य का आनंद लेना चाहते हैं, तो नवंबर से मार्च के बीच यात्रा की योजना बनाना सबसे उचित रहेगा। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है, जो मंदिरों की भव्यता और आसपास के नज़ारों का भरपूर अनुभव करने के लिए आदर्श समय है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर में दर्शन हेतु दिशा-निर्देश
दिलवाड़ा जैन मंदिरों की पवित्रता और गरिमा को बनाए रखने के लिए, दर्शनार्थियों से अनुरोध है कि वे मंदिर दर्शन के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन करें। ये नियम सभी आगंतुकों को एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं।
- फोटोग्राफी : मंदिर परिसर के भीतर फोटोग्राफी पूरी तरह से वर्जित है, ताकि इस पवित्र स्थान की गरिमा बनी रहे।
- जूते-चप्पल: मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पूर्व अपने जूते-चप्पल बाहर निकालना अनिवार्य है।
- मौन: मंदिर में शांति बनाए रखना आवश्यक है, ताकि ध्यानपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण बना रहे।
- समय: मंदिर दर्शन का समय दोपहर 12 बजे से शाम 6 बजे तक है। शांत वातावरण का आनंद लेने के लिए कम भीड़भाड़ वाले समय में दर्शन करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- भोजन और पेय पदार्थ: मंदिर परिसर में किसी भी प्रकार के खाद्य या पेय पदार्थ लाना वर्जित है।
आस-पास घूमने योग्य स्थल
अगर आप माउंट आबू की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो ऐसा टूर पैकेज चुनें जिसमें ठोस और सुव्यवस्थित यात्रा कार्यक्रम हो। इससे यह सुनिश्चित होगा कि दिलवाड़ा जैन मंदिरों के साथ-साथ आसपास के प्रमुख पर्यटन स्थलों की भी सैर कर सकें। माउंट आबू में ठहरते समय आप निम्नलिखित चार प्रमुख स्थलों की यात्रा कर सकते हैं:
नक्की झील
क्या आप जानते हैं कि भारत की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील माउंट आबू में स्थित है? नक्की झील लगभग 11,000 मीटर गहरी है और शांत वातावरण के बीच दोस्तों या परिवार के साथ दोपहर की पिकनिक के लिए यह एक आदर्श स्थान है।
माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य
यहां की जैव विविधता को करीब से जानने के लिए यह अभयारण्य अवश्य देखें। राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी ‘गुरु शिखर’ पर स्थित यह स्थल हर आयु वर्ग के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यदि आप भाग्यशाली हों, तो यहां आपको भारतीय तेंदुआ, भालू, सांभर हिरण या धारीदार लकड़बग्घा भी देखने को मिल सकते हैं।
अचलगढ़ किला
माउंट आबू से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ऐतिहासिक किला 1452 ई. में महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था। इसका उद्देश्य दुश्मनों की गतिविधियों पर नज़र रखना था। दिलवाड़ा मंदिरों के अतिरिक्त इस किले में कई जैन मंदिर भी स्थित हैं। यह किला सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
माउंट आबू बाज़ार
यदि आप राजस्थानी परिधान और पारंपरिक जूते खरीदना चाहते हैं, तो माउंट आबू बाजार आपके लिए उपयुक्त स्थान है। यहां स्थित सरकारी हस्तशिल्प एम्पोरियम से आप शुद्ध और प्रामाणिक हस्तशिल्प भी खरीद सकते हैं। इसके अलावा, यहां के स्ट्रीट फूड स्टॉल्स पर मिलने वाले स्थानीय व्यंजन आपकी यात्रा को और भी स्वादिष्ट बना देंगे।
प्रवेश शुल्क और समय
दिलवाड़ा मंदिरों में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है। पर्यटकों के लिए मंदिर रोज़ 12:00 बजे दोपहर से 6:00 बजे शाम तक खुला रहता है। जैन समुदाय के लिए मंदिर सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर कैसे पहुँचे?
सड़क मार्ग
दिलवाड़ा जैन तीर्थ सिरोही शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग-62 के माध्यम से लगभग 84.9 किलोमीटर दूर स्थित है। सिरोही, उदयपुर, अजमेर और जयपुर सहित आसपास के प्रमुख शहरों से राज्य परिवहन एवं निजी बस सेवाएँ नियमित रूप से उपलब्ध हैं। साथ ही आप निजी कार या टैक्सी द्वारा आरामदायक यात्रा कर सकते हैं; मार्ग पूरी तरह से पक्की और अच्छी स्थिति में है, जहाँ से अरावली की पहाड़ियों के मनोरम नज़ारे दिखाई देते हैं। माउंट आबू बस डिपो से तीर्थ केवल 28 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे स्थानीय बस या टैक्सी द्वारा आसानी से तय किया जा सकता है।
वायु मार्ग
दिलवाड़ा तीर्थ का नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है, जो लगभग 185 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अहमदाबाद जैसे महानगरों से उदयपुर के लिए दैनिक उड़ानें उपलब्ध हैं। उदयपुर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद आप टैक्सी या बस द्वारा तीस से सैंतालीस किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं, जिसे पूरा करने में लगभग तीन से चार घंटे का समय लगता है।
रेल मार्ग
अबू रोड रेलवे स्टेशन दिलवाड़ा तीर्थ से सिर्फ 28 किलोमीटर दूर है और यह दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जोधपुर एवं जैसलमेर सहित देश के बड़े शहरों से सीधी रेल कनेक्टिविटी प्रदान करता है। अबू रोड पर उतरने के बाद अंतिम दूरी आप लोकल बस, टैक्सी या ऑटो-रिक्शा से लगभग 45–60 मिनट में पूरी कर सकते हैं। इससे तीर्थ तक आसान और किफायती पहुंच सुनिश्चित होती है।