गागरोन किला: रहस्यमय जल दुर्ग और गौरवशाली इतिहास
अक्सर किलों की नींव ही उनकी कहानियों की शुरुआत होती है — लेकिन गागरोन किला इससे अलग है।
यह एक ऐसा किला है, जिसकी कोई नींव नहीं है, फिर भी यह शान से खड़ा है, वीरता, बलिदान और स्वाभिमान की गाथाएँ अपने भीतर समेटे हुए। बिना नींव के भी यह दुर्ग आज झालावाड़ की आन-बान और पहचान बना हुआ है। आइए, जानें उस गागरोन किले के बारे में, जो न केवल स्थापत्य का चमत्कार है, बल्कि हमारी गौरवशाली विरासत का प्रतीक भी है
गागरोन किला इतिहास
गागरोन किला मूल रूप से डोड वंश द्वारा बनवाया गया था। बाद में राजपूत राजा राणा कुम्भा ने इसे और विकसित किया।
किले का इतिहास कई हाथों से गुज़रा – 1561 में मुगल सम्राट अकबर ने इसे अपने अधीन किया, फिर 1616 में राजपूतों ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया।
एक ऐसा युद्ध, जो स्वाभिमान के लिए लड़ा गया
गागरोन किले के नाम से जुड़ा एक प्रमुख युद्ध है – गागरोन का युद्ध, जो 1591 में लड़ा गया था। यह संग्राम राजपूत राजा राणा सांगा और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ था।
सुल्तान खिलजी ने राणा सांगा और मेदिनी राय के बीच के मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, जो राणा सांगा को नागवार गुज़रा। उन्होंने इसे एक अपमान के रूप में लिया और युद्ध का बिगुल बजाया। युद्ध में राणा सांगा ने सुल्तान को पूरी तरह पराजित कर दिया। परंतु, ये युद्ध राज्य विस्तार के लिए नहीं था – यह स्वाभिमान की रक्षा के लिए था। इसलिए राणा सांगा ने सुल्तान को सम्मानपूर्वक कुछ समय के लिए बंदी बनाया और फिर न सिर्फ उन्हें मुक्त किया बल्कि उनका राज्य भी लौटा दिया।
सुल्तान ने कृतज्ञता स्वरूप अपने खानदानी मुकुट और कमरबंद, जो सुल्तान होशंग शाह के समय से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा था, राणा सांगा को भेंट किया। हालांकि, सुल्तान के पुत्र को सुरक्षा की दृष्टि से बंधक रखा गया।
जौहर: जब स्त्रियों ने मौत को गले लगाया, पर अपमान नहीं सहा
गागरोन का इतिहास केवल युद्धों का गवाह नहीं, बल्कि स्त्री-सम्मान के चरम रूप “जौहर” का भी साक्षी है। इस किले में दो बार जौहर की घटना घट चुकी है।
“जौहर” वह भीषण परंपरा थी जब हार निश्चित जानकर राजपूत महिलाएं अपनी इज़्ज़त की रक्षा के लिए विवाहिक वस्त्रों में सजकर अग्नि में कूद जाती थीं। अपमान, दासता या बलात्कार से बचने के लिए वे खुद को अग्नि को समर्पित कर देती थीं।
गर्भवती स्त्रियाँ, बालिकाएँ – कोई पीछे नहीं हटता था। आज भी किले के अंदर स्थित ‘जौहर कुंड’ इस भयावह बलिदान की स्मृति को जीवित रखे हुए है।
1857 में, जब देश स्वतंत्रता की लहरों से गुज़र रहा था, ब्रिटिश और भारतीय विद्रोहियों के बीच भी यहां संघर्ष हुआ। अंग्रेजों ने कब्ज़ा किया, लेकिन कुछ ही दिनों में भारतीयों ने इसे वापस ले लिया।
जल में खड़ा एक अजेय दुर्ग: गागरोन की अद्वितीय बनावट
गागरोन दुर्ग, जिसे जल दुर्ग (Water Fort) भी कहा जाता है, भारत के उन चुनिंदा किलों में से है जो पूरी तरह से पानी से घिरे हुए हैं। यह न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी एक बेजोड़ रचना है।
13वीं शताब्दी में बना यह किला कभी झालावाड़ राज्य की राजधानी हुआ करता था। इसका निर्माण राजा विक्रमादित्य द्वारा 1211 से 1237 ई. के बीच कराया गया था। ऊँची पहाड़ी पर स्थित यह किला तीन तरफ से पानी और एक तरफ से खाई से घिरा हुआ है — जो इसे लगभग अभेद्य बनाता है।
प्रवेश द्वार जो इतिहास के दरवाज़े खोलते हैं
गागरोन किले में कुल तीन मुख्य द्वार हैं:
- जय पोल – जो विजय और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है
- सूरज पोल – पूर्व दिशा की ओर बना यह द्वार सुबह की पहली किरणों को आत्मसात करता है
- अंधेरी पोल – जो रहस्यमयी गलियों की ओर ले जाती है
इसके अलावा, दो छोटे द्वार भी हैं – चोर पोल (गुप्त मार्ग के लिए) और नया पोल।
महलों की अद्भुत श्रृंखला
किले के भीतर कई भव्य महल, मंदिर और हवेलियाँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- रतन महल – सात मंज़िला यह भवन अपनी दीवारों पर की गई नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
- फूल महल – जैसा नाम वैसा स्वरूप, यहाँ की दीवारें रंग-बिरंगे फूलों के भित्तिचित्रों से सजी हैं।
- शीश महल – एक राजसी कृति, जहाँ हर दीवार पर आईनों की बारीक कारीगरी है, जो रोशनी पड़ते ही चमक उठती है।
- हवा महल – खुली हवा में बना एक सुंदर मंडप, जहाँ से किले का पूरा परिसर और नीचे बसा नगर दृश्य-पट की तरह नज़र आता है।
गागरोन किले के टिकट
प्रवेश शुल्क
श्रेणी | शुल्क (INR) |
वयस्क (भारतीय) | ₹50 |
बच्चे (भारतीय) | ₹25 |
विदेशी पर्यटक | ₹100 |
खुलने का समय
गागरोन किला सप्ताह के हर दिन खुला रहता है और पर्यटक निम्नलिखित समय में इसका भ्रमण कर सकते हैं:
सोमवार से रविवार: सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक
यात्रा सुझाव:
गर्मी के मौसम में दोपहर की तेज धूप से बचने के लिए सुबह जल्दी या फिर शाम के समय किला घूमना ज्यादा आरामदायक और आनंददायक रहेगा।
यात्रा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- पानी की बोतल साथ रखें – किले का परिसर बड़ा है और गर्मी में घूमना थका सकता है।
- आरामदायक जूते पहनें – किले में चढ़ाई और ऊबड़-खाबड़ रास्ते हैं।
- गाइड की सहायता लें – अगर आप इतिहास में रुचि रखते हैं, तो स्थानीय गाइड आपकी यात्रा को और भी जानकारीपूर्ण बना सकते हैं।
- सुबह या शाम का समय चुनें – तेज धूप से बचने के लिए यह सबसे उपयुक्त समय होता है।
- फोटोग्राफी – यहाँ की वास्तुकला और प्राकृतिक दृश्य फोटोग्राफ़ी के शौकीनों के लिए किसी खजाने से कम नहीं।
गागरोन किले तक कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग से:
गागरोन किले का निकटतम हवाई अड्डा कोटा एयरपोर्ट है, जो झालावाड़ से लगभग 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोटा पहुँचने के बाद आप टैक्सी या कैब बुक कर सकते हैं, या फिर राजस्थान रोडवेज की बसों से झालावाड़ तक आरामदायक यात्रा कर सकते हैं।
रेल मार्ग से:
रेल के माध्यम से यात्रा करना चाहते हैं तो नजदीकी रेलवे स्टेशन रामगंज मंडी जंक्शन है, जो झालावाड़ से लगभग 26 किलोमीटर दूर है। यहां से गागरोन किले तक पहुँचने के लिए टैक्सी, कैब या लोकल ट्रांसपोर्ट की सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग से:
झालावाड़ तक नियमित रूप से सरकारी और निजी बसें उपलब्ध हैं जो राजस्थान के प्रमुख शहरों से जुड़ी हुई हैं। अगर आप खुद की कार से यात्रा कर रहे हैं, तो सड़क मार्ग भी एक बेहद सुगम और दृश्य-समृद्ध विकल्प है। झालावाड़ पहुँचने के बाद आप सीधे गागरोन किले तक ड्राइव कर सकते हैं या स्थानीय टैक्सी सेवा का लाभ ले सकते हैं।