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एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर: आस्था, इतिहास और वास्तुकला की अद्वितीय गाथा

दुनिया में कुछ ही मंदिर ऐसे होते हैं, जहाँ जब कोई श्रद्धालु या दर्शक उनके पवित्र गलियारों से होकर गुजरता है, तो वह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं देखता — वह इतिहास की एक जीवंत गाथा का साक्षी बनता है।

ऐसा ही एक दिव्य मंदिर है — उदयपुर में स्थित एकलिंगजी मंदिर। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक समरसता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक भी है। यहाँ राजस्थानी परंपराएँ और सनातन संस्कृति अपने पूर्ण वैभव में दिखाई देती हैं। आइए, जानते हैं इस पावन धाम की विशेषताओं को विस्तार से।

श्री एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर का इतिहास

श्री एकलिंगजी मंदिर का उल्लेख 15वीं शताब्दी में लिखे गए ऐतिहासिक ग्रंथ एकलिंग महात्म्य में मिलता है। इस धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथ के अनुसार, इस भव्य मंदिर का निर्माण 734 ईस्वी में मेवाड़ के महान शासक बप्पा रावल द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर भगवान शिव के एक रूप ‘एकलिंग’ को समर्पित है, जिन्हें मेवाड़ के कुलदेवता और राजा के अधिपति के रूप में पूजा जाता है।

मुगल काल और विध्वंस
कालक्रम में यह मंदिर अनेक बार आक्रमणों और लूटपाट का शिकार बना, विशेष रूप से दिल्ली सल्तनत के शासनकाल में। मंदिर की मूल संरचना और शिवलिंग सहित कई मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। मंदिर के विग्रह और पत्थर पर समय के इन ज़ख़्मों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं।

पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार
इतिहास के इन कठिन दौरों के बाद भी श्री एकलिंगजी मंदिर की महिमा कभी धूमिल नहीं हुई। विभिन्न राजाओं द्वारा समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। इन पुनर्निर्माण कार्यों का उद्देश्य केवल स्थापत्य सौंदर्य को वापस लाना नहीं था, बल्कि लोगों की आस्था और विश्वास को पुनर्जीवित करना भी था।

सांप्रदायिक संबंध और धार्मिक परिवर्तन
प्रारंभ में यह मंदिर पाशुपत संप्रदाय से जुड़ा हुआ था। बाद में यह नाथ संप्रदाय के अधीन आया और 16वीं शताब्दी के बाद से इसे रामानंदी संतों द्वारा संचालित किया जाने लगा। इन धार्मिक धाराओं ने मंदिर के पूजन-पद्धति और परंपराओं को नई दिशा दी।

एकलिंगजी मंदिर की सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक परिवर्तन

श्री एकलिंगजी मंदिर की धार्मिक पहचान समय के साथ बदलती रही है, जो इसे एक जीवित सांस्कृतिक धरोहर का स्वरूप प्रदान करती है। प्रारंभ में यह मंदिर पाशुपत संप्रदाय से जुड़ा हुआ था, जो भगवान शिव की उपासना का एक प्राचीन रूप है। इसके बाद यह नाथ संप्रदाय के प्रभाव में आया, जिसने योग और तप की परंपराओं को मंदिर की पूजा-पद्धति में समाहित किया।

रामानंदी परंपरा का आगमन
16वीं शताब्दी के बाद यह मंदिर रामानंदी संप्रदाय के अधीन आ गया। रामानंदी संन्यासियों ने मंदिर के संचालन और धार्मिक गतिविधियों को नई दिशा दी। इस परिवर्तन ने मंदिर को एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा दी, जिसमें भक्ति, सेवा और समर्पण की भावना प्रमुख रही।

इतिहास की धाराओं से गुज़रता मंदिर
एकलिंगजी मंदिर केवल पत्थरों से बनी एक इमारत नहीं है, यह एक साक्षी है उस सांस्कृतिक यात्रा का, जिसमें लूटपाट, युद्ध, पुनर्निर्माण और आस्था सब कुछ समाहित हैं। इस मंदिर ने समय की हर कसौटी को पार किया है – सल्तनत के हमलों से लेकर राजाओं के समर्पित प्रयासों तक।

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एकलिंगजी मंदिर, उदयपुर की वास्तुकला

द्विस्तरीय संरचना और पिरामिड शैली का शिखर
एकलिंगजी मंदिर राजस्थान की प्राचीन वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। यह मंदिर दो मंजिला है और इसका शिखर विशाल पिरामिडनुमा आकार का है, जो इसे दूर से ही एक दिव्य रूप देता है। मंदिर की ऊँचाई, नक्काशीदार कलात्मकता और उसकी संरचना इसकी भव्यता को और भी प्रभावशाली बनाते हैं।

बाहरी स्वरूप – सीढ़ियाँ और जलसंपर्क
मंदिर की बाहरी दीवारें विशेष सीढ़ियों से युक्त हैं, जो सीधे जल स्रोत की ओर उतरती हैं। यह विशेष शैली न केवल सौंदर्य को बढ़ाती है, बल्कि धार्मिक स्नान और पूजन की परंपराओं से भी जुड़ी हुई है।

प्रवेश द्वार – नंदी की स्वागत मुद्रा
जैसे ही कोई श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करता है, सबसे पहले चांदी से बनी नंदी की मूर्ति उसका स्वागत करती है। नंदी को कैलाश पर्वत के द्वारपाल के रूप में माना जाता है। मंदिर में इसके अतिरिक्त पीतल और काले पत्थर की नंदी की दो और मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।

गर्भगृह और मंडप – शिव की चतुर्मुखी प्रतिमा
मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की चतुर्मुखी मूर्ति स्थापित है, जो एक ऊँचे स्तंभों वाले मंडप में विराजित है। यह मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है और लगभग 50 फीट ऊँची है। शिवजी के चारों मुख उनके चार स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं:

  • पूर्व दिशासूर्य देव (जीवनदायी ऊर्जा के रूप में)
  • पश्चिम दिशाब्रह्मा जी (सृष्टि के रचयिता)
  • उत्तर दिशाविष्णु जी (पालक)
  • दक्षिण दिशारुद्र रूप (विनाश और परिवर्तन के देवता)

पारिवारिक स्वरूप – एक पूर्ण शिव परिवार
मूर्ति के चारों ओर माँ पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की मूर्तियाँ हैं, जो शिव परिवार को पूर्णता प्रदान करती हैं और भक्तों को पारिवारिक एकता का संदेश देती हैं।

मंदिर परिसर – कुंडों की पवित्रता
मंदिर के उत्तर भाग में दो विशेष पवित्र जलकुंड स्थित हैं –

  • कर्ज कुंड – जो प्रायश्चित और ऋणमोचन से जुड़ा है
  • तुलसी कुंड – जिसे धार्मिक पवित्रता और पूजन के लिए प्रयोग में लाया जाता है

दर्शन समय 

सत्रसमय
प्रातःकालीनसुबह 4:30 बजे से 7:00 बजे तक और 10:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक
सायंकालीनशाम 5:00 बजे से रात 7:30 बजे तक

मंदिर खुलने और बंद होने का समय 

दिनसमय
सोमवार से रविवारसुबह 4:00 बजे से रात 7:30 बजे तक

आरती समय 

सत्रसमय
सुबह की आरती5:30 बजे, 8:15 बजे, 9:15 बजे और 11:30 बजे
दोपहर की आरती3:30 बजे और 4:30 बजे
शाम की आरती5:00 बजे और 6:30 बजे

आज के दिनानुसार दर्शन समय 

दिनदर्शन समय
बुधवार4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे
गुरुवार4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे
शुक्रवार (गणतंत्र दिवस)4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे (समय बदल सकता है)
शनिवार4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे
रविवार4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे
सोमवार4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे
मंगलवार4:00 – 6:00 बजे, 10:30 – 1:30 बजे, 5:15 – 7:45 बजे

एकलिंगजी मंदिर उदयपुर कैसे पहुंचे?

हवाई मार्ग 

एकलिंगजी मंदिर के निकटतम हवाई अड्डा है दबोक एयरपोर्ट (महाराणा प्रताप हवाई अड्डा), जो उदयपुर शहर के मुख्य केंद्र से लगभग 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यह हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, जयपुर, जोधपुर और औरंगाबाद जैसे प्रमुख शहरों से सीधी उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। यदि आपके पास समय की कमी है और आप तेज़ यात्रा चाहते हैं, तो हवाई मार्ग सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकता है। एयरपोर्ट से आप कैब या टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक आरामदायक यात्रा कर सकते हैं।

रेल मार्ग 

उदयपुर शहर रेल नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। उदयपुर रेलवे स्टेशन, शहर के केंद्र से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली, जोधपुर, जयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर और अहमदाबाद जैसे कई शहरों से सीधी ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं। रेल यात्रा विशेष रूप से परिवार और दोस्तों के साथ करने पर मनोरंजक होती है और यात्रा के दौरान सुंदर दृश्यों का आनंद भी लिया जा सकता है।

सड़क मार्ग 

सड़क मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए एकलिंगजी मंदिर तक पहुँचना अत्यंत सरल है। उदयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 8 (NH 8) से जुड़ा हुआ है, जो दिल्ली और मुंबई को जोड़ने वाला एक प्रमुख मार्ग है। राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की राज्य परिवहन सेवाएं उदयपुर के लिए नियमित अंतराल पर बसें चलाती हैं। इसके अलावा, कैब, टैक्सी और निजी वाहन की सेवाएं भी आसानी से उपलब्ध हैं। अगर आप क्षेत्रीय संस्कृति, स्थानीय लोगों और प्रकृति को करीब से देखना चाहते हैं, तो सार्वजनिक बस यात्रा एक अनूठा अनुभव दे सकती है

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