(Junagarh fort Bikaner) भुजिया ने भले ही बीकानेर को वैश्विक पहचान दी हो, लेकिन इस बीकानेर शहर की आत्मा उसके भव्य किले में बसती है। बीकानेर शहर के हृदय में स्थित जूनागढ़ किला न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि इतिहास के पन्नों में भी इसकी वीर गाथाएँ अमिट रूप से दर्ज हैं। बालू पत्थर से बने इस भव्य किले ने कई आक्रमणों को सहा, लेकिन आज भी यह गर्व से सीना ताने खड़ा है। आइये आज इस किले के बारे में हम और विस्तार से जाने
जूनागढ़ किले का इतिहास(Junagarh kila kisne banwaya tha)
Junagarh Fort की नींव 1478 में राव बीका ने रखी थी — वही राव बीका जिन्होंने 1472 में बीकानेर नगर की स्थापना की थी। प्रारंभ में यह किला केवल एक पत्थर का दुर्ग था, जिसे बाद में अधिक सुदृढ़ और भव्य बनाने के उद्देश्य से वर्तमान जूनागढ़ किले का निर्माण किया गया।
बीकानेर का भाग्य उसके छठे शासक राजा राय सिंहजी (1571–1611) के शासनकाल में नई ऊंचाइयों पर पहुँचा। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर के दरबार में एक प्रतिष्ठित सेनापति के रूप में सेवा दी। मेवाड़ के अर्ध-राज्य को जीतने जैसी उनकी सफल सैन्य रणनीतियों ने उन्हें सम्मान, पुरस्कार और जागीरें दिलाईं। उन्हें गुजरात और बुरहानपुर की जागीरें भेंट में मिली, जिनसे प्राप्त राजस्व से उन्होंने Junagarh fort bikanerके निर्माण की योजना बनाई।
जूनागढ़ किले का शिलान्यास समारोह 17 फरवरी 1589 को हुआ, और लगभग पाँच वर्षों बाद, 17 जनवरी 1594 को यह अद्वितीय किला पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। राजा राय सिंह न केवल एक कुशल योद्धा थे, बल्कि कला और वास्तुकला के भी गहरे जानकार थे। उनके विदेश प्रवासों से प्राप्त ज्ञान और अनुभवों की झलक किले की भव्यता और शिल्प में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
यह किला राजस्थान के थार मरुस्थल की पृष्ठभूमि में एक वास्तुकला का चमत्कार है — जहाँ राजपूती परंपरा, मुगलिया शैली और विदेशी प्रभावों का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
इतिहास गवाह है कि इस Junagarh fort को कई बार बाहरी आक्रमणकारियों ने जीतने का प्रयास किया, परंतु 1534 में केवल एक बार बाबर के पुत्र कामरान मिर्ज़ा इसे एक दिन के लिए अपने अधीन कर सका। उसके बाद यह किला सदियों तक अभेद्य बना रहा।
जूनागढ़ किले की वास्तुकला (Junagarh fort architecture)
Junagarh fort आयताकार संरचना में निर्मित है, जिसकी लंबाई लगभग 1078 गज और कुल क्षेत्रफल 63,119 वर्ग गज है। प्रारंभ में इसे राव बीका द्वारा निर्मित पुराने पत्थर के दुर्ग की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। पहले इसके चारों ओर एक गहरी खाई (खंदक) भी थी, जो अब नहीं रही।
किले के अंदर कई महल स्थित हैं, जिनकी बनावट और सजावट देखते ही बनती है। लाल और सुनहरी बलुआ पत्थर पर की गई नक्काशी इस किले की विशेष पहचान है। यहाँ की सभी संरचनाएँ लाल पत्थर से बनी हुई हैं, और आंतरिक भागों की सजावट पारंपरिक राजस्थानी शैली में की गई है। किले में सात प्रवेश द्वार, भव्य महल, तथा हिंदू और जैन मंदिर स्थित हैं। इसमें दो मुख्य द्वार हैं – करण पोल और सूरज पोल।
पूर्व दिशा में स्थित करन पोल को पहले मुख्य प्रवेश द्वार के रूप में उपयोग किया जाता था, जबकि वर्तमान में सूरज पोल से प्रवेश होता है। सुबह की पहली सुनहरी किरणें जब करन पोल की पीली बलुआ पत्थरों पर पड़ती हैं, तो वह दृश्य अत्यंत मनमोहक प्रतीत होता है और इसे शुभ संकेत माना जाता है।
जूनागढ़ किले की आलीशान संरचनाएँ और प्रत्येक निर्माण की बारीकी इसकी शाही भव्यता की कहानी कहती हैं। यह किला वास्तुकला की उस जटिलता का प्रतीक है, जो एक ओर मध्यकालीन सैन्य शैली में है, तो दूसरी ओर इसकी भीतरी सजावट अत्यंत सुंदर और कलात्मक है।
और दुर्गों के बारे में जाने
i.) कुम्भलगढ़ किला
ii) भानगढ़ किला
जूनागढ़ किले के अंदर की शाही संरचनाएं
द्वार
हमने द्वार के बारे में वास्तुकला में वर्णन किया है, आइये विस्तार में जानते है इनके बारे में | किले में कुल सात द्वार हैं, जिनमें दो मुख्य हैं:
करण पोल: प्राचीनकाल में यह प्रवेश द्वार था।
सूरज पोल: वर्तमान में मुख्य द्वार है, जो पूर्व दिशा की ओर खुलता है। जब सूरज की पहली किरणें पीले बलुआ पत्थर पर पड़ती हैं, तो वह दृश्य स्वर्णिम आभा से दमक उठता है। इसके प्रवेश द्वार पर दो लाल पत्थर के हाथियों की प्रतिमाएं हैं, जिनके साथ महावत भी दर्शाए गए हैं।
अन्य द्वारों में दौलत पोल, चाँद पोल और फतेह पोल प्रमुख हैं। दौलत पोल पर उन वीरांगनाओं की हथेलियों की छाप अंकित है जिन्होंने युद्ध में शहीद अपने पतियों की चिताओं के साथ सती होकर बलिदान दिया।
महल
फूल महल
किले का सबसे पुराना महल, जिसे राजा राय सिंह ने बनवाया। इसकी कलात्मकता इसकी उम्र को पीछे छोड़ देती है।
चंद्र महल
किले का सबसे भव्य, खूबसूरत और सुरुचिपूर्ण महल — जहाँ शाही वैभव की झलक हर कोने में है।
करण महल
वर्ष 1680 में महाराजा करण सिंह ने इस महल का निर्माण औरंगज़ेब पर विजय की स्मृति में करवाया।
अनूप महल
राज्य के प्रशासनिक कार्यों का केंद्र रहा यह महल एक बहुमंज़िला इमारत है, जिसे बारीकी से सजाया गया है।
बादल महल
अनूप महल का विस्तार है, जहाँ दीवारों पर बादलों के चित्रों के साथ अद्वितीय पेंटिंग्स देखने को मिलती हैं।
गंगा महल
बीसवीं सदी में राजा गंगा सिंह द्वारा निर्मित यह महल अब एक संग्रहालय का रूप ले चुका है।
मंदिर
हर नारायण मंदिर: लक्ष्मी नारायण (भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी) को समर्पित शाही मंदिर।
रतन बिहारी मंदिर: किले के समीप स्थित यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है।
संग्रहालय
वर्ष 1961 में महाराजा डॉ. करणी सिंह द्वारा स्थापित संग्रहालय, जूनागढ़ के भव्य अतीत का साक्षी है। यहाँ प्रदर्शित हैं:
प्राचीन पांडुलिपियाँ (संस्कृत और फारसी)
लघु चित्रकला
शाही आभूषण और वस्त्र
युद्ध ड्रम, पालकी, हौदा, मीनाकारी के बर्तन
मध्यकालीन हथियारों का दुर्लभ संग्रह
जूनागढ़ किला बीकानेर – समय और यात्रा जानकारी
विभाग | विवरण |
खुलने का समय | सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक (पूरा साल यही समय रहता है) |
घूमने का सर्वोत्तम समय | अक्टूबर से मार्च – सबसे आरामदायक मौसम, न अधिक गर्मी न सर्दी। किले और बाहरी स्थल घूमने के लिए सबसे अनुकूल समय। |
ऑफ सीज़न | मार्च से जून – अत्यधिक गर्मी का समय, पर्यटकों की संख्या कम होती है लेकिन कुछ साहसी पर्यटक इस समय भी आते हैं। |
जूनागढ़ किला प्रवेश शुल्क विवरण
जूनागढ़ किला, बीकानेर – प्रवेश शुल्क विवरण
श्रेणी | प्रवेश शुल्क (₹) |
भारतीय वयस्क | ₹50 |
भारतीय छात्र | ₹30 |
विदेशी पर्यटक | ₹300 |
विदेशी छात्र | ₹150 |
संग्रहालय प्रवेश शुल्क | ₹50 |
सामान्य कैमरा शुल्क | ₹30 |
वीडियो कैमरा शुल्क | ₹100 |
जूनागढ़ किला कैसे पहुँचे
हवाई मार्ग से:
बीकानेर का निकटतम हवाई अड्डा शहर से लगभग 13 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। यह राजस्थान राज्य के प्रमुख हवाई अड्डों में से एक है।
रेल मार्ग से:
बीकानेर देश के अधिकांश बड़े शहरों से रेलमार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ट्रेन से यात्रा एक सुविधाजनक और किफायती माध्यम है।
सड़क मार्ग से:
राष्ट्रीय राजमार्ग 11, 15 और 89 बीकानेर को अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ते हैं। बस, निजी वाहन और अन्य परिवहन सुविधाएँ यहाँ यात्रा के लिए उपलब्ध हैं।