चित्तौड़गढ़ किला: इतिहास, वास्तुकला और वीरता की अमर गाथा

(Chittorgarh Fort)चित्तौड़गढ़ का नाम आपने काफी बार इत्तिहास के पन्नो में पढ़ा होगा या फिल्मो में देखा होगा | इस शहर इस अपनी कहानी है जो आते वर्ष लोगो को अपने ओर मोहित कर ही लेती है| और मोहित करता है इस शहर में स्थित चित्तौड़गढ़ का किला | चित्तौड़गढ़ किला आठ शताब्दियों तक मेवाड़ राज्य की राजधानी रहा, जो दुनिया के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले वंशों में से एक था। यह न केवल राजस्थान का सबसे प्रतिष्ठित किला माना जाता है, बल्कि भारत के सबसे विशाल किलों में से एक है और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा भी प्राप्त है।

चित्तौड़गढ़ किला का इतिहास (Chittorgarh fort history in hindi)

किसी भी स्मारक को महान बनाता है उसका इत्तिहास, तो आइये जानते है इसके इत्तिहास के बारे में | चित्तौड़गढ़ किले की स्थापना का इतिहास सातवीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है, जब मौर्य वंश के चित्रांगद मौर्य ने इसकी नींव रखी थी। हालांकि, आठवीं शताब्दी के मध्य में यह किला मेवाड़ वंश के संस्थापक बप्पा रावल के अधीन आ गया। इसके बारे में अलग-अलग मान्यताएँ हैं—कुछ के अनुसार, उन्हें यह किला दहेज में मिला था, जबकि अन्य मानते हैं कि उन्होंने इसे युद्ध में जीता था। लेकिन जो भी हुआ हो, 734 ईस्वी में बप्पा रावल ने इसे अपने विशाल साम्राज्य की राजधानी बना लिया, जो गुजरात से लेकर अजमेर तक फैला था।

मुग़लो का आक्रमण 

सैकड़ों वर्षों तक यह किला सुरक्षित रहा, लेकिन 1303 में दिल्ली सल्तनत के क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर पहला बड़ा आक्रमण किया। क्या वह इसकी मजबूत और रणनीतिक स्थिति के कारण इसे जीतना चाहता था? या फिर लोक कथाओं के अनुसार, उसकी लालसा राजा की सुंदर रानी पद्मिनी (पद्मावती) के लिए थी, जिसे वह अपने हरम में शामिल करना चाहता था?

कारण जो भी रहा हो, परिणाम भयावह था। किले में रहने वाले लगभग 30,000 लोगों की हत्या कर दी गई, राजा या तो युद्ध में मारा गया या बंदी बना लिया गया, और रानी पद्मिनी ने अन्य राजपूत महिलाओं के साथ जौहर कर लिया ताकि वह खिलजी और उसकी सेना के हाथों अपमानित न हों।

हालांकि, मेवाड़ के राजपूत योद्धाओं ने 1326 में फिर से इस किले पर अधिकार कर लिया और अपना शासन पुनः स्थापित किया। 1433 से 1468 तक, महाराणा कुंभा ने इस किले की दीवारों को और भी मजबूत किया। लेकिन शांति ज्यादा समय तक नहीं टिकी। 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने इस किले पर हमला कर दिया, क्योंकि वह अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। इस समय तक मेवाड़ की सेना काफी शक्तिशाली हो चुकी थी, लेकिन इसके बावजूद भी सुल्तान युद्ध जीतने में सफल रहा।

दूसरा जौहर

रानी कर्णावती, जो विधवा थीं, ने मुगल सम्राट हुमायूं से सहायता मांगी, लेकिन वह समय पर नहीं आ सका। राजा और उसका भाई उदय सिंह द्वितीय किसी तरह बचकर निकल गए, लेकिन कहा जाता है कि 13,000 राजपूत महिलाओं ने आत्मसमर्पण की बजाय सामूहिक जौहर कर लिया।

हालांकि, बहादुर शाह की यह जीत ज्यादा समय तक नहीं रही। जल्द ही हुमायूं ने सुल्तान को चित्तौड़गढ़ से निकाल बाहर किया और युवा राणा विक्रमादित्य को किले का शासक बना दिया, शायद यह सोचकर कि वह उसे आसानी से नियंत्रित कर सकेगा।

लेकिन मेवाड़ के शासक अन्य राजपूतों की तरह मुगलों के सामने झुके नहीं। 1567 में मुगल सम्राट अकबर ने किले पर एक और भीषण हमला किया। उसकी सेना को किले की दीवारों तक पहुँचने के लिए सुरंगें खोदनी पड़ीं और फिर बारूद और तोपों से इन दीवारों को तोड़ना पड़ा। आखिरकार, 1568 में वह किले को जीतने में सफल हो गया।

हालांकि, इससे पहले ही राणा उदय सिंह द्वितीय वहाँ से निकल चुके थे और किले की रक्षा की जिम्मेदारी उनके सरदारों के हाथों में थी। अकबर की सेना ने हजारों लोगों की निर्मम हत्या कर दी और एक बार फिर, किले के भीतर हजारों राजपूत महिलाओं ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया।

चित्तौड़गढ़ का किला केवल पत्थरों से बनी एक इमारत नहीं, बल्कि राजपूत वीरता, आत्मसम्मान और बलिदान की अमर गाथा है, जिसने भारतीय इतिहास में एक अनूठी पहचान बनाई है।

किले की वास्तुकला (Chittorgarh fort architechture)

180 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित और 700 एकड़ में फैला हुआ यह किला लगभग 13 किलोमीटर लंबा है — और इसका भव्य दृश्य किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकता है।

किले तक पहुँचने के लिए एक लंबा मार्ग है जो सात विशाल द्वारों से होकर गुजरता है। ये द्वार हैं:

  • गणेश पोल
  • हनुमान पोल
  • पदन पोल
  • जोड़ला पोल
  • भैरव पोल
  • लक्ष्मण पोल
  • और अंतिम व मुख्य द्वार — राम पोल

इन सभी द्वारों का निर्माण किले को हमलावरों और आक्रमणकारियों से सुरक्षा देने के उद्देश्य से किया गया था। इन द्वारों की बनावट और उनका स्थान रणनीतिक रूप से इस तरह चुना गया था कि शत्रु को आगे बढ़ने में कठिनाई हो।

प्रमुख दर्शनीय स्थल(Places to visit near Chttorgarh fort)

1. विजय स्तंभ (Victory Tower)

यह भव्य स्तंभ महाराणा कुम्भा द्वारा मोहम्मद खिलजी पर विजय के प्रतीक रूप में बनवाया गया था। हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों से सज्जित यह स्तंभ चित्तौड़गढ़ किले में स्थित है। इसकी ऊँचाई से पूरी चित्तौड़ नगरी का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है, जिसे देखना हर पर्यटक के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। यहाँ जैन देवी पद्मावती की छवि भी देखी जा सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यहाँ ‘अल्लाह’ शब्द अरबी में नौ बार उकेरा गया है।

2. कीर्ति स्तंभ (Kirti Stambh)

जैन संस्कृति की महिमा को दर्शाने के लिए जैन व्यापारी जीजा भागरवाला द्वारा यह स्तंभ बनवाया गया था। यह स्तंभ प्रथम तीर्थंकर आदिनाथजी को समर्पित है और इसमें दिगंबर जैन संतों की सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।

3. गौमुख जलाशय (Gaumukh Reservoir)

किले के पश्चिमी छोर पर स्थित यह जलाशय धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है। गौमुख की आकृति में बनी संरचना से लगातार पानी गिरता रहता है, जिससे यह जलाशय भरता है। कहा जाता है कि जो भक्त कई तीर्थों की यात्रा करते हैं, उनके लिए गौमुख कुंड की यात्रा धार्मिक रूप से पूर्णता मानी जाती है।

4. राणा कुम्भा महल (Rana Kumbha Palace)

शानदार स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व वाला यह महल सिसोदिया वंश के नाम से जुड़ा है। यही वह स्थल है जहाँ रानी पद्मिनी ने अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया था। यह प्रसिद्ध संत और भक्त कवयित्री मीराबाई का निवास भी रह चुका है।

5. पद्मिनी महल (Padmini Palace)

रानी पद्मिनी की सुंदरता जितनी प्रसिद्ध थी, उतना ही मनमोहक यह महल भी है। यही वह स्थान है जहाँ रानी पद्मिनी और राजा रतन सिंह निवास करते थे। इसी महल से अलाउद्दीन खिलजी की पद्मिनी के प्रति आसक्ति शुरू हुई थी, जिसने आगे चलकर युद्ध को जन्म दिया।

6. मीरा मंदिर (Meera Temple)

भक्त मीराबाई को समर्पित यह मंदिर 1449 में महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था। भगवान विष्णु की पूजा के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर शांति की तलाश कर रहे पर्यटकों के लिए आदर्श स्थान है। इसकी वास्तुकला इंडो-आर्यन शैली की मिसाल है। मंदिर के बाहर एक अद्वितीय मूर्ति है जिसमें पाँच मानव शरीर और केवल एक सिर है, जो यह दर्शाता है कि सभी धर्म, संस्कृति और समुदाय एकता में रहते हैं।

7. कालिका माता मंदिर (Kalika Mata Temple)

14वीं सदी में निर्मित यह मंदिर देवी काली को समर्पित है। मंदिर की वास्तुकला और दीवारों पर बनी कलाकृतियाँ अत्यंत आकर्षक हैं, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाती हैं।

चित्तौड़गढ़ का हर कोना इतिहास, भक्ति और शौर्य की गाथाओं से भरा है — यह स्थल न केवल दर्शनीय है, बल्कि भावनाओं और गौरव का प्रतीक भी है।

चित्तौड़गढ़ किला की प्रसिद्ध घटनाएँ

1. अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण (1303):
दिल्ली सल्तनत के क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण किया। कहा जाता है कि उसका उद्देश्य न केवल किले की रणनीतिक स्थिति पर कब्ज़ा करना था, बल्कि रानी पद्मिनी के अद्वितीय सौंदर्य को पाना भी था। परंतु, राजपूती मर्यादा और सम्मान की रक्षा करते हुए रानी पद्मिनी और अन्य राजपूत महिलाएँ जौहर की अग्नि में समा गईं। यह घटना आज भी स्त्री-शौर्य और आत्मसम्मान की मिसाल मानी जाती है।

2. बहादुर शाह का आक्रमण (1535):
गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला कर उसे अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। इस युद्ध में एक बार फिर राजपूतों ने अप्रतिम वीरता का प्रदर्शन किया। रानी कर्णावती के नेतृत्व में महिलाओं ने दुश्मन के हाथों अपमानित होने की बजाय सामूहिक जौहर किया, और पुरुषों ने युद्धभूमि में अपने प्राणों की आहुति दी।

3. अकबर का आक्रमण (1568):
मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर ज़ोरदार हमला किया और कई महीनों तक घेराबंदी करने के बाद अंततः किले को जीत लिया। इस युद्ध में हजारों राजपूत योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की, और राजपूत स्त्रियों ने एक बार फिर जौहर कर अपने आत्मसम्मान की रक्षा की। इस आक्रमण के बाद किला मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया, लेकिन राजपूतों की शौर्यगाथा इतिहास के पन्नों में अमर हो गई।

प्रवेश शुल्क (Chittorgarh fort ticket price)

पर्यटक वर्गशुल्क
भारतीय पर्यटक₹10 प्रति व्यक्ति
विदेशी पर्यटक₹100 प्रति व्यक्ति

चित्तौड़गढ़ किला कैसे पहुँचें?

हवाई मार्ग से:
पर्यटक अगर हवाई यात्रा को प्राथमिकता देते हैं, तो डबोक एयरपोर्ट (उदयपुर एयरपोर्ट) उनके लिए सबसे नज़दीकी विकल्प है, जो चित्तौड़गढ़ से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित है। वहाँ से टैक्सी या बस के माध्यम से आसानी से किले तक पहुँचा जा सकता है। यह तरीका समय की बचत के लिए सबसे उपयुक्त है।

रेल मार्ग से:
अगर आप ट्रेन से यात्रा करना पसंद करते हैं, तो चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन कई बड़े शहरों से अच्छे से जुड़ा हुआ है, जैसे कोटा, उदयपुर, जयपुर, अजमेर और दिल्ली। एक और शानदार और शाही अनुभव के लिए पर्यटक ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ ट्रेन का विकल्प भी चुन सकते हैं, जो चित्तौड़गढ़ स्टेशन पर रुकती है।

सड़क मार्ग से:
जो पर्यटक यात्रा के दौरान रास्तों का आनंद लेना चाहते हैं, उनके लिए सड़क मार्ग से यात्रा एक रोमांचकारी अनुभव हो सकती है। चित्तौड़गढ़ इन प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है(Chittorgarh fort distance):

  • जयपुर से – 325 किमी
  • दिल्ली से – 583 किमी
  • इंदौर से – 325 किमी
  • अजमेर से – 185 किमी

Chittorgarh Fort Photos

निष्कर्ष

चित्तौड़गढ़ किला(Chittorgarh fort) भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक अमूल्य धरोहर है। इसका ऐतिहासिक महत्व, वास्तुकला, और वीरता की गाथाएँ इसे एक अद्वितीय पर्यटन स्थल बनाती हैं। यदि आप इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला में रुचि रखते हैं, तो चित्तौड़गढ़ किला आपके लिए एक बेहतरीन यात्रा स्थल साबित हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *